सोशल मीडिया पर अक्सर सांप्रदायिक और घृणित टिप्पणियों के लिए गुमनाम लोगों को फटकार लगाने वाले पटकथा लेखक-कवि जावेद अख्तर का कहना है कि ट्रोल करने वाले लोगों को पता होना चाहिए कि उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार हो सकता है।
चाहे वह हाल में हुए ‘रोजा’ विवाद के दौरान भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी का समर्थन करना हो, विराट कोहली की प्रशंसा करने पर उन पर निशाना साधने वाले लोगों को जवाब देना हो या पहलगाम आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा करना हो, अख्तर ‘एक्स’ पर अपनी राय खुलकर व्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या उनका परिवार उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों से दूर रहने के लिए कहता है, अख्तर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हां, बिल्कुल। यहां तक कि मेरे दोस्त भी कहते हैं। वे कहते हैं कि आप इसमें क्यों पड़ना चाहते हो? आप इन सब चीजों से ऊपर हो।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मेरी अशिष्टता के लिए मुझे क्षमा करें, मैं ज्यादातर इन लोगों (ट्रोल करने वालों) से ऊपर महसूस करता हूं, लेकिन कभी-कभी आपको उन्हें बताना पड़ता है कि, ‘‘नहीं, आप यह स्वतंत्रता नहीं ले सकते हैं, और यदि आप ऐसा करेंगे, तो मैं आपको उसी में जवाब दूंगा।’’
गीतकार अख्तर ‘इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी’ (आईपीआरएस) के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने मंगलवार को यहां फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि कॉपीराइट निकाय को सरकारी समर्थन की आवश्यकता है ताकि कलाकारों को सार्वजनिक प्रदर्शन रॉयल्टी का उचित हिस्सा मिल सके।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि कुछ लाख लोग हमें प्रदर्शन रॉयल्टी का भुगतान नहीं कर रहे हैं, तो हम अदालतों में लाखों मामले नहीं ले जा सकते, यह संभव नहीं है। केवल सरकार ही है जो भुगतान को अनिवार्य बनाने के लिए किसी प्रकार का नियम या उप-नियम बनाकर कोई दबाव बना सकती है।’’
अख्तर ने कहा, ‘‘जब भी मैंने किसी राजनीतिक दल या मंत्रालय से संपर्क किया है, तो उन्होंने इस मुद्दे के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाया है। वे भारतीय कलाकारों का सम्मान करते हैं, वे अक्सर हमारी मदद करने के लिए आगे आते हैं। अब हमें फिर से (अधिकारियों के पास) जाना है और उन्हें बताना है कि क्या गलत है। आपने एक शानदार कानून बनाया है, लेकिन यह जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहा है।’’
जाने-माने पटकथा लेखक सलीम खान के साथ मिलकर लिखी गई उनकी दो फिल्में ‘‘शोले’’ और ‘‘दीवार’’ के 50 साल पूरे हो रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि इन फिल्मों की स्थायी प्रासंगिकता का क्या कारण है, लेखक ने कहा कि लिखते समय यह अनुमान लगाना असंभव है कि किसी फिल्म का लोगों से जुड़ाव कैसे रहेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ अच्छे काम होते हैं जो रह जाते हैं लोगों के स्मृति पटल पर। और जिन फिल्मों की आप बात कर रहे हैं, वे किसी न किसी तरह (लोगों की स्मृति में बनी हुई हैं)… ऐसा क्यों है, मुझे नहीं पता। अगर मुझे पता होता तो मैं ऐसा बार-बार करता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘50 साल पुरानी फिल्म के संवादों का जिक्र स्टैंड-अप कॉमेडी, अन्य फिल्मों और यहां तक कि राजनीतिक भाषणों में आज भी किया जाता है। यह कैसे और क्यों हुआ? मेरा मतलब है, इसका करिश्मा क्या है? करिश्मे की कोई परिनहीं है। ऐसा होता है और फिर आप इसका कारण जानने की कोशिश करते हैं, इसमें कोई तर्क ढूंढते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि यह इससे परे है।