देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा: कोठारी

प्रयागराज। शैक्षिक जगत की समस्याओं को गिनाने वालों का नहीं अपितु समाधान लेकर आने वाले विद्वानों का ज्ञानोत्सव प्रयागराज में होगा। आजादी के बाद से अब तक विभिन्न संगोष्ठी एवं कार्यशालाओं में समस्याओं पर चर्चा होती रही है। प्रश्न यह उठता है कि क्या केवल समस्याओं के उठाने एवं उन पर चिंता एवं चिंतन करने से समस्याओं का समाधान संभव है? देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा।
उक्त विचार शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने उ.प्र राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज में बुधवार को आयोजित ज्ञानोत्सव संविमर्श में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ज्ञानोत्सव का उद्देश्य शिक्षा जगत में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों एवं शोधार्थियों को एक मंच पर लाना है। जिससे सभी संस्थान एक दूसरे के अभिनव शोध प्रयोग के निष्कर्षों को जान सकें। उन्होंने कहा कि भारत की जो प्राचीन ज्ञान संपदा है वह केवल नगरों तक ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों एवं प्राचीन ग्रंथों में भी है। जिस पर चिंतन और मंथन होना समसामयिक आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि इसके पहले दिल्ली में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में ज्ञानोत्सव का आयोजन हो चुका है। पूर्वांचल में आयोजित होने वाले इस ज्ञान महोत्सव में यह प्रयास किया जा रहा है कि सुदूर ग्रामीण संस्थाओं सहित नगरीय संस्थाएं अपने उत्कृष्ट प्रयोगों को लेकर ज्ञान उत्सव में आएं।
मुक्त विवि के कुलपति प्रो.कामेश्वर नाथ सिंह ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि विश्वविद्यालयों की स्थापना का उद्देश्य ज्ञान का सृजन करना, ज्ञान का विस्तार करना एवं ज्ञान का उपयोग करना है। जिससे सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में गुणात्मक परिवर्तन हो सके। इसी दायित्व बोध से ज्ञानोत्सव का आयोजन भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, प्रयागराज ट्रिपल आईटी में 25-26 अप्रैल को होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि ज्ञानोत्सव में उ.प्र राजर्षि टंडन मुक्त विवि सहित प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों एवं उत्कृष्ट शिक्षण संस्थान शामिल होंगे।
ज्ञानोत्सव के आयोजक एवं भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, प्रयागराज के निदेशक प्रो. पी. नाग भूषण ने ज्ञानोत्सव के विभिन्न छह सत्रों में चर्चा किए जाने वाले विषयों पर विस्तार से विवेचना प्रस्तुत की। उन्होंने मूल्यांकन विहीन अधिगम प्रणाली को अपनाने पर जोर दिया और कहा कि सीखना तभी संभव है जब सीखने वाला व्यक्ति भय मुक्त हो। उन्होंने कहा कि ज्ञानोत्सव ज्ञान की ज्योति जलाने का उत्सव है।
इस अवसर पर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कानपुर विवि में लागू किए गए नवीन पाठ्यक्रमों की चर्चा की तथा विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला। मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान एमएनएनआईटी प्रयागराज के निदेशक प्रो. राजीव त्रिपाठी ने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए छात्र शिक्षक दोनों स्तर पर पात्रता की आवश्यकता होती है। भाषा ज्ञान के लिए बाधा नहीं बननी चाहिए। सक्षम और सशक्त संप्रेषण मातृभाषा के ही माध्यम से संभव है। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के कुलपति प्रो.पीयूष रंजन ने कहा कि ज्ञानोत्सव में शोध के विभिन्न आयामों पर भी चर्चा होनी चाहिए। इस अवसर पर गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान झूंसी, प्रयागराज के निदेशक प्रो. बद्री नारायण ने स्थानीय ज्ञान को बढ़ावा देने एवं पाठ्यक्रमों के नवीनीकरण पर जोर दिया और ज्ञानोत्सव के एक सत्र में इस पर चर्चा कराने का प्रस्ताव दिया।
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. एच.एस उपाध्याय ने कहा कि दुनिया में जो भी मौलिक ज्ञान, शोध एवं रचनाएं हुई वह मातृभाषा के माध्यम से हुई इसलिए मातृभाषा को अध्ययन का माध्यम बनाने से व्यक्ति की क्षमता का प्रस्फुटन संभव है। इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के डॉ. मनीष अरोड़ा, चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के डॉ. सी.पी सचान एवं अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के प्रो. एस.पी मिश्रा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन ज्ञानोत्सव संविमर्श के संयोजक प्रो. पी.पी दुबे एवं धन्यवाद ज्ञापन स्वास्थ्य विज्ञान विद्या शाखा के निदेशक प्रो.गिरजा शंकर शुक्ल ने किया। इस अवसर पर ज्ञानोत्सव की वेबसाइट एवं लोगो का भी लोकार्पण भी किया गया।

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