भूखों को भोजन कराना सभी धर्मों का सार: अधोक्षजानन्द

प्रयागराज। भूखों को भोजन कराना सबसे बड़ा पुण्य एवं सभी धर्मों का सार है। बड़ा से बड़ा यज्ञादि अनुष्ठान भी प्राणियों को भोजन कराये बिना पूर्ण नहीं होता।
यह बातें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ महाराज ने ओल्ड जीटी रोड स्थित श्री आद्य शंकराचार्य धर्मोत्थान संसद के शिविर में संचालित विशाल भंडारा में कही। उन्होंने कहा कि पौराणिक इतिहास काल में भोजन कराने के महत्वपूर्ण तथ्य मिले हैं। श्रीकृष्ण के गौचारण लीला के दौरान वन में वर्षों से चल रहे यज्ञ की सफलता यज्ञ पत्नियों द्वारा ग्वालबालों को भोजन कराने से हुई थी। धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा आयोजित राजसूय यज्ञ में आगन्तुकों के लिए भेदभाव बिना विशेष रूप से भोजन व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। जिसमें दुर्योधन को खजाना, कर्ण को दान, द्रौपदी को पाकशाला, भीम को भोजन परोसने और स्वयं श्री कृष्ण ने पत्तल उठाने की जिम्मेदारी निभायी थी।
शंकराचार्य ने आगे कहा कि कलयुग में अन्नदान की अद्भुत महिमा बतायी गयी है। तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास करना भी बहुत बडा यज्ञ है, जो अनादि काल से होता आ रहा है। जिसमें देवता, दैत्य, ऋषि, मुनी, किंनर, राजा रंक सभी संगम स्नान कर जप तप यज्ञ अनुष्ठान करते हैं। यहां अन्नक्षेत्र चलाने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। शिविर में माघी पूर्णिमा तक विशाल भंडारा अनवरत चलता रहेगा।

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