शुआट्स में भौगोलिक उपदर्शन (जी.आई.) विषयक एक दिवसीय ओरिएन्टेशन कार्यशाला का आयोजन

पद्मश्री डा० रजनीकान्त ने भौगोलिक उपदर्शन को बताया बौद्धिक सम्पदा की रक्षा

प्रयागराज। सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (शुआट्स) के प्रसार निदेशालय द्वारा  भौगोलिक उपदर्शन विषयक एकदिवसीय ओरिएन्टेशन कार्यशाला का आयोजन किया गया। निदेशक प्रसार डा० प्रवीन चरन ने इस मुख्य वक्ता के रूप में भारत के जी.आई. मैन पद्मश्री डा० रजनी कान्त का स्वागत पुष्पगुच्छ देकर किया और बताया कि जी.आई. टैग की सहायता से हम स्थान विशेष के पारम्परिक उत्पादों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसकी सहायता से भारत में मेक इन इण्डिया प्रोडक्ट को अधिक बढ़ावा मिलेगा जिससे क्षेत्र के किसान, बुनकर आदि अपने-अपने उत्पादों को बनाकर सम्पूर्ण विश्व में बेच कर आर्थिक लाभ अर्जित कर सकते हैं।
सेन्टर फॉर जियोस्पैटिअल टेक्नोलॉजीस के विभागाध्यक्ष डा० दीपक लाल ने मुख्य वक्ता का परिचय दिया।
  प‌द्मश्री डा० रजनीकान्त ने अपने सम्बोधन में जी०आई० टैगिंग के विषय में व्यापक एवं विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि प्रयागराज जनपद विश्व के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। यहाँ त्रिवेणी संगम संगम के किनारे बसा हुआ शुआट्स विश्वविद्यालय सबसे पुराना विश्वविद्यालय है तथा यहाँ से अध्ययन प्राप्त छात्र आज सम्पूर्ण विश्व में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि जी.आई. टैगिंग में विश्वविद्यालयों का बहुत अहम योगदान है। जी०आई० राज्य एवं जनपदस्तर पर किसी भी उत्पाद को विशेष स्थान प्रदान कर उसे विश्व विख्यात बनाता है। आज जमीनी तौर पर पारम्परिक उत्पाद लुप्त होते जा रहें हैं जिन्हें प्रशिक्षण के माध्यम से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। पुनर्जीवन प्रदान करने के उपरान्त उसे जी.आई. से जोड़कर पारम्परिक रूप से उत्पादों को तैयार कर विश्वविख्यात बनाया जा सकता है जिससे उस क्षेत्र विशेष को प्रसिद्धता प्राप्त होती है तथा पारम्परिक रूप से कार्य करने वाले कार्मिकों को अधिक आर्थिक लाभ भी प्राप्त होता है । उन्होंने उत्पादों को प्रापर्टी राइट पर पंजीकृत कराने पर बल देते हुए बताया कि प्रापर्टी राइट पर पंजीकृत कराने से उनके उत्पादों की डुप्लीकेसी से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व० अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने कार्यकाल में जी.आई. पर कानून बनाया जो 2003 में लागू हुआ जिसके अन्तर्गत सर्वप्रथम दार्जिलिंग चाय को जी.आई. के अन्तर्गत पंजीकृत किया गया। उ०प्र० में सबसे पहले प्रयागराज के इलाहाबाद सुरखा को जी.आई. टैग प्राप्त हुआ। उन्होंने बताया कि जो उत्पाद क्षेत्र विशेष में 70-100 वर्षों पुराना लोकप्रिय है सिर्फ उन्हीं उत्पादों की जी.आई. टैगिंग की जा सकती है। उन्होंने बताया कि जीवित पशुओं का जी.आई. टैग नहीं किया जा सकता परन्तु उनके द्वारा प्राप्त उत्पादों का जी.आई टैग हो सकता है। उन्होंने जी.आई. टैग में विश्वविद्यालय की भूमिका हेतु बताया कि विश्वविद्यालय प्रयागराज हेतु इलाहाबाद सुरखा एवं मूंज के उत्पादों हेतु क्यू. आर. कोड तैयार कर जी.आई. टैगिंग में अहम भूमिका निभा सकते हैं ।
संयुक्त निदेशक प्रसार प्रो० (डा०) ए. के. चौरसिया ने कहा कि हमें चाहिए कि हम विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र में आने वाले सभी जनपदों से क्षेत्र विशेष के उत्पादों को चिन्हित करें तथा उसे जी.आई. टैग से जोड़ने हेतु समस्त सम्भव प्रयास करें जिससे विश्वविद्यालय के माध्यम से क्षेत्र विशेष के कृषक, बुनकर, मध्यम व्यापारी भी समृद्ध हो सकें ।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागो के सह प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक, प्रसार निदेशालय एवं कृषि विज्ञान केन्द्र प्रयागराज के समस्त वैज्ञानिकगण उपस्थित थे। कार्यक्रम में प्रश्नोत्तरी सत्र में प्रतिभागियों द्वारा मुख्य वक्ता से जी.आई. सम्बन्धित अनेक प्रश्न पूछे गये जिसका निराकरण मुख्य वक्ता द्वारा दिया गया । 

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