हंगामा क्यों ?

डॉ कुसुम पाण्डेय

हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।”
जब लाक डाउन 3 में शराब की दुकान खोलने का सरकारी आदेश हुआ तो साथ ही गाइडलाइन भी जारी की गई कि सोशल और फिज़िकल  डिस्टेंसिंग का पालन होना जरूरी है। समय सुबह 9 से शाम को 6 या कहीं कहीं 7 बजे तक का था, पर देखने में आया कि सुबह से ही लंबी कतारें लग चुकी थी, दुकानें खुलते ही लोग टूट पड़े फिर ना तो उन्हें महामारी का डर रहा और ना ही सोशल डिस्टेसिग का, यहां तक कि कई जगह तो पुलिस को दुकान बंद करवानी पड़ी, और मजे की बात तो यह रही कि लोग झोला भर-भर के शराब की बोतलें ले रहे थे अकेले यूपी में 1 दिन में 300 करोड़ की शराब बिकी, तो अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे देश में लगभग 2.5 लाख करोड़ का राजस्व मिला शराब बिक्री से।
तो साफ दिखाई दिया के लोगों ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर सरकार को आर्थिक मंदी से उबारने में मदद की। इसका सोशल मीडिया पर बहुत मजाक भी बना, सरकार की बहुत आलोचना हुई, सो अलग बात है, पर मुझे लगता है यह आप आपद धर्म  की श्रेणी में आता है। जिस तरह जान बचाना आवश्यक है, वैसे ही जहान बचाना भी आवश्यक है, और इसके लिए सभी को अपने अपने तरीके से मदद करनी चाहिए और जैसा कि लोग कर भी रहे हैं।
जैसे कि कोरोना  वैश्विक महामारी है,  वैसे ही शराब तो पूरे विश्व में सहज स्वीकार्य है। मदिरा और मदिरालय पर तो  स्वर्गीय श्री हरिवंश राय बच्चन जी ने पूरी मधुशाला ही लिख डाली है ।बहुत सारी शायरियां और गजलें और फिल्में शराब के ऊपर ही बनी हैं ।तो इसकी स्वीकार्यता को नकारा नहीं जा सकता है।
“जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज निछावर कर दूंगा, मैं तुझ पर जग की मधुशाला। धर्म ग्रंथ जला चुकी है जिसके अंदर की ज्वाला, मंदिर मस्जिद गिरजाघर तोड़ चुका जो मतवाला।
पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका, कर सकती है आज उसी का स्वागत तेरी मधुशाला”
तो उस समय से लेकर आज तक इस लाल सुरा को हमेशा आलोचना  सहनी पड़ी है, हालांकि यह सुख-दुख सबका साथी है यह मधुशाला, कई बार तो इसका उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है, कुछ दवाइयां तो बिना अल्कोहल के नहीं बनती, विदेशों में तो बिना शराब के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
हमारे देश में भी सुरा और मदिरा तो देवाधिदेव काल से ही जानी जाती हैं, फिर आज  इतने हंगामे की वजह?? स्वाभाविक है महामारी के इस दौर में सामाजिक और शारीरिक दूरी के नियम का टूटना, क्योंकि सबको चिंता है कि गेहूं के साथ घुन नहीं पिसना चाहिए,यहाँ पीने वालों से कोई गिला नहीं, लेकिन नियम टूटने से जो महामारी का रूप विकराल होगा डर इस बात का है।
जहां तक अर्थव्यवस्था की बात है, तो सभी जानते हैं कि आबकारी विभाग से सरकार को बहुत राजस्व की प्राप्ति होती है, तो सरकार भी क्या करें?? इस विपत्ति में शायद उसको यही उचित लगा, फिर हम सब को भी उनका उपहास नहीं करना चाहिए।
और एक वैज्ञानिक बात की बार-बार कहा जा रहा है कि 70% अल्कोहलिक सैनिटाइजर वायरस खत्म कर सकता है, तो शायद पीने वाले इसी बहाने अपने अंदर के वायरस को खत्म करना चाहते थे। और हमें जिस गरीब जनता की रोटी की चिंता है, वह भी तो भूखे रह लेना पसंद करते हैं, लेकिन ठर्रा नहीं छोड़ सकते, तो फिर तो एक तरह से तो यह एक नितांत व्यक्तिगत पहलू है।
बस गलती है कि “सावधानी हटी और दुर्घटना घटी” बस इसी बात का ध्यान सब को रखना चाहिए।
“मंदिर मस्जिद बैर कराते, प्रेम कराती मधुशाला। बिना पिए जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला विश्व विजयिना  बनकर जग में आई तेरी मधुशाला।”
तो फिर अब इस समय आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर जिस तरह भी सरकार की मदद कर सके करें, लेकिन कोरोना महामारी से निपटने के जो नियम बताए गए हैं, उनको ध्यान में रखना जरूरी है।
आज एक बहुत पुराना गाना याद आ रहा है कि “पंडित जी मेरे मरने के बाद, बस इतना कष्ट उठा लेना मेरे, मुंह में गंगाजल की जगह, थोड़ी मदिरा टपका देना”y कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो”।

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