हिंदी व्यंग कविता : महानायक

अपने मतलब स्वार्थ के खातिर
बहुतो को जिन्होने भूला दिया
 अपनी ख्याति और नाम के खातिर जिन्होंने बहुतो को रुला दिया,,,,,,,वो कैसे महानायक हैं ,,,?
  मॉनवता को ताख पर रख के
मॉनव धर्म को भुला दिया,,,,
जिसने  उन्हें दिया सहारा
उसको ही इन्होंने रुला दिया,,,,ये कैसे महानायक हैं,,,,,?
बड़े मतलबी बन के बनिया
अपनी नजरो से देखे दुनिया,
तोल  मोल के सब कुछ बोले
व्यपारी बन दुनिया मे डोले,
जब तक ना दिखे कोई फायदा
तब तक ना करते किसी से कोई
वायदा,,, ये कैसे महानायक हैं,,,,,2
 ना मन्दिर पर दिया बधाई, ना
भूमि पूजन का बखान किया,
बड़े सेकुलर बनके भईया
पार कर रहे जीवन की नैया , खुद
के हित की हरदम सोचे , ये
बहुत बड़े व्यापारी हैं ,,इनकी
ना किसी से कोई यारी हैं,,, ये कैसे महानायक हैं,,,,,,?
जिस धरा पर जन्म लिया और
जिस धरा पर नाम कमाया,उस धरा के शान में इन्होंने कभी भी ना दो शब्द कहा, बन व्यापारी
तने रहे पक्के बनिया बने रहे, ,,,,
ये कैसे महानायक हैं,,,,,,?
हर एक शब्द बेचते अपना बिना
दाम के मुँह ना खोले , आफत विपत आपदा आये ये कभी भी
मुँह से कुछ ना बोले ये लेंन देंन की समझे भाषा मुफ़्त में इनसे न रखे कोई आशा ,,,
,,,,,
ये कैसे महानायक हैं,,,,,?
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
           (   रसिक बनारसी  )

Related posts

Leave a Comment