जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है वैसे ही ब्राह्मण राजनीति तेज हो गई है। ब्राह्मण राजनीति के जरिए राजनीतिक दल ब्राह्मणों को साधने की कोशिश कर रहे है। लेकिन सबसे खास बात यह भी है कि अब तक जो दल गैर ब्राह्मण की राजनीति करते थे वह अब भाजपा के ब्राह्मण वोट बैंक में सेंधमारी करने की फिराक में है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी नरम हिंदुत्व अख्तियार कर रही है। राजनीति पर निगाह रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस ‘हिंदू विरोधी’ छवि को त्याग कर ‘नरम हिंदुत्व’ को अपनाना चाहती है और इसके लिए वह सावधानीपूर्वक कदम उठा रही है। पार्टी ने प्रशांत किशोर और उनकी टीम को अपना चुनावी रणनीतिकार बनाया है। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कराने और दुर्गा पूजा समितियों को आर्थिक सहायता देने जैसे निर्णय भी लिए हैं। हालांकि, ममता बनर्जी नीत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि “समावेशी” राजनीति के तहत आठ हजार सनातन ब्राह्मण पुजारियों को आर्थिक सहायता और मुफ्त आवास उपलब्ध कराया गया है, वहीं, विपक्षी दल भाजपा ने इसे उसके हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने का प्रयास करार दिया है। बंगाल में ममता सरकार द्वारा या ऐलान ऐसे समय में किया गया है जब उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण पॉलिटिक्स अपने शवाब पर है। इसके अलावा ममता बनर्जी आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिए हिंदुत्व की राह चलने को मजबूर हैं। तभी तो जो ममता बनर्जी जय श्रीराम के नारे से चीढ़ जाती थीं वह अब पूजा पंडालों को आर्थिक मदद देने और ब्राह्मणों की रक्षा करने की बात कर रही हैं। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जब ब्राह्मण पॉलिटिक्स हावी है तो भगवान परशुराम उसके प्रतीक बन चुके हैं। समाजवादी पार्टी जो अब तक गैर ब्राह्मण की राजनीति करती आ रही है उसने अपनी सरकार आने पर भगवान परशुराम की मूर्तियां लगवाने का ऐलान कर दिया है। सरी ओर दलित की राजनीति करने वाले मायावती ने भी परशुराम के मूर्ति स्थापित करने का ऐलान किया है। इसके अलावा सत्ताधारी भाजपा के विधायक ने भी एक बड़ा बयान दिया है। भाजपा विधायक ने कहा कि हम राज्य में ब्राह्मणों की जीवन बीमा और मेडिकल बीमा कराने की पहल करेंगे। हालांकि, सरकार की ओर से अब तक इस पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। पर ऐसा नहीं है कि पूर्वी या फिर उत्तर भारत में ही ब्राह्मण पॉलिटिक्स हावी है। दक्षिण भारत में भी इस तरीके की राजनीति देखने को मिलती है। पिछले साल आंध्र प्रदेश चुनाव के मौके पर वहां की तत्कालीन सरकार ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए उन्हें दो लाख की सब्सिडी देकर स्विफ्ट डिजायर कार उपलब्ध कराई थी। कार की बाकी रकम भी बहुत सस्ते ब्याज दर पर थी। वहीं, तेलंगाना में भी ब्राह्मणों के लिए सरकारी उपक्रम स्थापित किया जा चुका है। चुनावी राज्यों में बढ़ती ब्राह्मण पॉलिटिक्स सभी को हैरानी में भी डाल रही है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां ब्राह्मणों की आबादी 8 से 11 फ़ीसदी तक ही है। यह संख्या के लिहाज से देखें तो यह मुसलमानों से भी बेहद कम है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति से किसी दल को कितना फायदा होगा यह देखने वाला होगा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ब्राह्मणों को खुश करने में जुटी हुई हैं लेकिन माना जाता है कि यहां ब्राह्मणों की आबादी 3 से 5% ही है। ब्राह्मण बंगाल की पॉलिटिक्स में कभी भी निर्णायक नहीं रहे हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी ब्राह्मण कुछ खास संख्या में नहीं है फिर भी वहां की राजनीतिक दल ब्राह्मणों को आकर्षित करने में लगी रहती हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब इन राज्यों में ब्राह्मण कोई बहुत बड़ी निर्णायक की भूमिका में नहीं है फिर इन्हें आकर्षित करने के लिए पार्टियां क्यों दांव खेल रही हैं। दरअसल, 90 के दशक के पहले ब्राह्मण वोट कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था। 90 के दशक में राजनीति में परिदृश्य बदले और ब्राह्मणों का वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हो गया। जिन राज्यों में भाजपा कमजोर है वहां ब्राह्मणों का वोट उन्हें नहीं मिल पाता है। जब-जब ब्राह्मणों का समर्थन भाजपा को मिला है वह मजबूत हुई है।
Related posts
-
जाति जनगणना कराएगी मोदी सरकार, कैबिनेट बैठक में लिया गया बड़ा फैसला
केंद्र की मोदी सरकार ने फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल... -
Akshay Tritya पर PM Modi का आया बयान, कहा विकसित भारत को नई ताकत दे
देश भर में अक्षय तृतीया के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।... -
देश की भावनाओं को समझकर राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सही कदम उठाएं प्रधानमंत्री: खरगे
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से...