ज्वाला देवी गंगापुरी में सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं आचार्य नरेंद्र देव जी की जयंती धूमधाम से मनाई गई

प्रयागराज।
रज्जू भैया प्रसार समिति द्वारा संचालित ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज गंगापुरी रसूलाबाद प्रयागराज में  दिनांक 29 /10/2024 को भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल व आचार्य नरेंद्र देव जी की जयंती के पूर्व संध्या पर  कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानाचार्य  युगल किशोर मिश्र व संजय उपाध्याय के द्वारा सरदार पटेल की प्रतिमा पर पुष्पार्चन व दीपार्चन कर  किया गया।
 इस अवसर पर आचार्य संजय उपाध्याय ने सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के विषय में बताते  हुए कहा कि भारत की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सभी भारतवासी को प्राण-प्रण से तत्पर रहना चाहिए। आजादी के बाद ज्यादातर प्रांतीय समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थी। गांधीजी की इच्छा थी इसलिए सरदार पटेल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से दूर रखा और जवाहरलाल नेहरू को समर्थन दिया। बाद में उन्हें उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद सौंपा गया जिसके बाद उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में शामिल करना था इस कार्य को उन्होंने बगैर किसी बड़े लड़ाई झगड़े से बखूबी किया। परंतु हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए सेना भेज कर भारत को  एकीकृत किया भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था।
एकादश के छात्र यश स्वरूप ने आचार्य नरेंद्र देव जी के विषय पर बताते हुए कहा किआचार्य नरेंद्रदेव का जन्म संवत् 1889 (सन् 1889 ई.) में कार्तिक शुक्ल अष्टमी को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता  बलदेव प्रसाद जी अपने समय के बड़े वकीलों में थे। वे धार्मिक वृत्ति के थे। कांग्रेस और सोशल कानफरेंस के कामों में भी थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेते थे। इस नाते उपदेशक, संन्यासी और पंडित उनके घर आया करते थे। इस तरह बचपन में ही स्वामी रामतीर्थ, पंडित मदनमोहन मालवीय, पं॰ दीनदयालु शर्मा आदि के संपर्क में आने का मौका मिला। पिता जी के प्रभाव से आचार्य जी के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग उपजा। इसी कारण आगे चलकर आपने एम.ए. में संस्कृत की शिक्षा ली। इसके पूर्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. किया। बी.ए. पास कर पुरातत्व पढ़ने काशी के क्वींस कालेज में आए। सन् 1913 में एम.ए. पास किया। घरवालों ने वकालत पढ़ने का आग्रह किया। नरेंद्रदेव जी को यह पेशा पसन्द नहीं था। किंतु वकालत करते हुए राजनीति में भाग ले सकने की दृष्टि से कानून पढ़ा। 1915-20 तक पाँच वर्ष फैजाबाद में वकालत की। इसी बीच असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ। असहयोग आन्दोलन के शुरू होने के बाद  जवाहरलाल नेहरू की सूचना और अपने मित्र  शिवप्रसाद गुप्त के आमंत्रण पर नरेंद्रदेव जी विद्यापीठ आए।1934 में आपने  जयप्रकाश नारायण, डाक्टर राममनोहर लोहिया तथा अन्य सहयोगियों के साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 1934 ई. में हुए प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष आचार्य जी ही थे। कांग्रेस से बाहर आने पर 1948 में सोशलिस्ट पार्टी का जो सम्मेलन पटना में हुआ उसकी अध्यक्षता भी आचार्य जी ने ही की। समाजवादी आन्दोलन में आचार्य नरेंद्रदेव का वही स्थान रहा है जो एक परिवार में पिता का होता है या व्यक्ति में आत्मा का होता है। आचार्य जी मार्क्सवादी समाजवादी थे, किन्तु बराबर कहा करते थे कि इस युग की दो मुख्य प्रेरणाएँ राष्ट्रीयता और समाजवाद है और राष्ट्रीय परिस्थितियों और आकांक्षाओं की दृष्टि से ही समाजवाद का अर्थ करने पर जोर देते रहे। इस दृष्टि से आचार्य जी किसानों के सवाल पर विशेष जोर देते थे और किसानों की भूमिका का विशेष मान करते थे, जब कि मार्क्सवादी परम्परा के अनुसार किसान की भूमिका प्रतिक्रियावादी ही हो सकती है। भारत में समाजवाद को राष्ट्रीयता और किसानों के सवाल से जोड़ना, आचार्य जी की भारतीय समाजवाद को एक स्थायी देन है।
प्रधानाचार्य युगल किशोर मिश्र ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि सरदार पटेल ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। सरदार पटेल द्वारा इस लड़ाई में अपना पहला योगदान खेड़ा संघर्ष में दिया गया। जब खेड़ा क्षेत्र सूखे की चपेट में था और वहां के किसानों ने अंग्रेज सरकार से करो में छूट देने की मांग की तब अंग्रेज सरकार ने इस मांग को अस्वीकार किया तब सरदार पटेल महात्मा गांधी और अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें करना देने के लिए प्रेरित किया अंत में सरकार को झुकना पड़ा और किसानों को कृषि राहत दे दी गई।
 छात्रा तृषा यादव व छात्र आर्यन दुबे,आदित्य सिंह, शिवांश  चौरसिया एवं प्रांजल त्रिपाठी ने सरदार पटेल व आचार्य नरेंद्र देव जी के जीवन पर अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का संचालन छात्रा इंद्राणी सिंह व अदिति यादव ने किया।इस अवसर पर सभी भैया /बहन व आचार्य/आचार्या उपस्थित रहे।

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