नारीबारी मे मंगलवार को संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा मे उमड़ी भक्तों की भीड़
प्रयागराज। भगवान माया से नही मिलते,भगवान भक्ति से मिलते है,भगवान प्रेम से मिलते है, भगवान भाव से मिलते है।
वेद व्यास जी की कथा को नारद जी ने श्रीमद्भागवत कथा के रुप में अठारह हजार श्लोकों में परिवर्तित किया था, जिनका आज कलयुग में हम श्रवण कर रहे हैं। धुंधकारी जैसा पातकी भी जिसका श्रवण कर भवसागर से पार उतर गया। दुःख की घड़ी में मनुष्य को धैर्य विचार कर कार्य लेना चाहिए। श्री हरि पर विश्वास पूर्वक छोड़ देना चाहिए। चूंकि आवेश मे लिया निर्णय अक्सर गलत होते है। जिसका फिर चाहे जितना प्राश्चित करे वह सही नही हो सकता। समाज मे कोई भी गलत कार्य करें तो उसका दंड मिलना चाहिए। धर्म के कार्यो का प्रत्यक्ष फल भी मिलता है। द्रौपदी के पुत्रों के हत्यारे अश्वत्थामा को अधर्म का तत्काल दण्ड मिला, जिसको अश्वत्थामा जन्म जन्मांतर तक भोगने को विवश है। उक्त बातें संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन मंगलवार को व्यास आचार्य पं. अभिषेक कृष्णम हरिकिंकर जी महराज ने सर्वेश्वर हनुमान मन्दिर नारीबारी में कहीं। उन्होंने कुन्ती स्तुति,परिक्षित श्राप,शुकागमन और सती चरित्र का हिन्दी और संस्कृत के शब्दों में वर्णन करते हुए कहा कि हरि और गुरु की निन्दा करना और सुनना भी महा पातक है। जिसका कहीं कोई समाधान नहीं है। भगवान को सदैव स्मरण करना, नित्य आराधना, संध्या करना चाहिए। कुछ लोग केवल और केवल दुःख मे सुमिरन करते है। कभी राजा के गददी मे अंधा,बहरा,काना को नही बैठाना चाहिए चूंकि वह अभिमानी होता है।वह कब क्या कर जाय कहा नही जा सकता वैसे भी भगवान
जहा अभिभान होता है वहा नही रहते। वहा मनुष्य को भी नही रहना चाहिए। इसके बाद सुन्दर सी शिव भगवान की झांकी भक्तों के आकर्षक का केन्द्र रही। कथा के बीच-बीच संगीतमय भजनों से भक्त झूमते रहे। कथा के अंत मे भागवत पुराण भगवान की आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से शरद गुप्ता,सूर्यभान सिंह, सूर्यकान्त शुक्ल, नरेन्द्र केसरवानी, ऋषि मोदनवाल, दिलीप कुमार चतुर्वेदी, बैजनाथ केसरवानी,इन्द्रमणि चौबे,केदार चौरसिया सहित सैकड़ों महिला पुरुष उपस्थित रहे।