भगवान श्री कृष्ण ने हजारों वर्ष पूर्व कहा था कि “नदियों में मैं गंगा हूँ”- स्वामी कमलेश्वरानंद

प्रयागराज,गंगा है तो भारत है,गंगा नही तो भारत नहीं,गंगा है तो भारत का सहित्य सद्ग्रन्थ है, गंगा है तो भारत के ऋषि मुनि, साधु संत सद्गुरु सदवेत्ता हैं,गंगा है तो तीर्थ है,गंगा नही तो महातीर्थ की भावना नहीं, गंगा की कितनी महत्ता है कि हजारों हजारों साल पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने भी अर्जुन से कहा कि तुम मुझे नही समझ सकते तो ऐसा समझो कि “नदियों में में गंगा हूँ”…….यद्यपि गंगा से बड़ी और विशाल नदियां भी इस पृथ्वी पर हैं,ब्रह्मपुत्र,अमेजान जैसी और भी कई नदियाँ गंगा से बड़ी है जिसके समक्ष गंगा फीकी पड़ जाए पर गंगा के पास जो है,गंगा में जो है वह पृथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है। पूरी पृथ्वी पर एकमात्र गंगा ही सबसे ज्यादा जीवंत, जीवनदायी, प्राणवान,प्राणदायी नदी है। सारी नदियों का पानी आप बोतल में भर कर रख दो कुछ समय बाद सड़ जाएगा पर गंगा का पानी आप बोतल में बंद कर वर्षो वर्षों रख दो तब भी नही सड़ेगा,गंगा की यही रासायनिक विशिष्टता उसे अन्य सभी नदियों से विशेष बनाता है,किसी भी हाल ,किसी भी काल गंगा ने अपनी पवित्रता,अपनी स्वच्छता और अपनी निर्मलता कायम रखा है,यह स्वतः प्रामाणिक और सिद्ध है…….बावजूद इसके हमने क्या की, हमने हजारों हजारों वर्षों से गंगा में लाशें बहाई,मानव अस्थि पंजर भी बहाई,गंदे नाले के पानी, मल मूत्र भी बहाए फिर भी गंगा मानव द्वारा उत्सर्जित सभी विषों को स्वयं में अपनी शक्ति क्षमता से समाहित कर बिष को अमृत कर आज भी हमारे लिए प्रवहित है,हमे शुद्ध, विशुद्ध, पावन, निर्मल, निश्छल,निस्पृह होने का संदेश दे रही है,अन्य किसी नदी के पानी मे आप लाशें, हड्डी डालकर देखो कुछ समय बाद ही उस नदी का पानी सड़ जाएगा,परिवर्तित शुद्ध विशुद्ध करने की क्षमता किसी अन्य नदी में नही सिर्फ एकमात्र गंगा नदी में है,यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि गंगा का पानी असाधारण है,यह पानी नही बल्कि मानव मात्र के लिए औषधि है, अमृत है है,जिसके पान करने से मानव शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ होता ही है…….. आखिर क्यों गंगा का पानी असाधारण अति विशिष्ट है..? यद्यपि गंगा जहां से निकलती हैं वह से अन्य कई भी नदियाँ निकलती हैं,जिन पहाड़ों से गुजरती हैं वह से अन्य कई नदिया भी गुजरती  हैं और गंगा में जो खनिज व तत्व मिलते है वह अन्य नदियों में भी मिलते हैं,और गंगा में अन्य नदियों का भी पानी आता है फिर भी गंगा की यह अति विशिष्ठता अन्य किसी नदी में नही पाई जाती सिर्फ गंगा में ही परिवर्तित कर अपने सम रूप बना लेने की क्षमता पाई जाती है,किसी भी प्रकार की नदी हो,किसी भी प्रकार का विष हो सब गंगा में मिलते ही गंगा के समान गुण धर्म वाले हो जाते है,आखिर क्या कारण है..? विज्ञान सिर्फ इतना बता पाया है कि गंगा के पानी में कुछ रासायनिक गुण धर्म ऐसे है जो सब को परिवर्तित कर अपने समान पवन पवित्र बना देता है,पर कैसे ये विज्ञान अभी नही बता पाया, हो सकता आज नही तो कल इस बात को विज्ञान समझ पाए कि गंगा में यह गन धर्म इसलिए है कि गंगा के तट पर हजारों वर्षों से लाखों लाखों लोगों  ने जीवन की परम अवस्था को उपलब्ध किया है,प्राण, आत्म, परमात्म साक्षत्कार किया है,जिनके प्रभाव से गंगा के तट पर बालू का एक एक कण भी उसी शक्ति क्षमता से पूर्ण है जिस क्षमता से गंगा अपने आप मे प्राणवान बन प्राणदायी, जीवन प्रदायी बन गई हैं……
आओ करे गंगा में स्नान,और करें अपने जीवन का उद्धार……

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