माघ मेले में क्रियायोग शिविर

प्रयागराजए फरवरी 8ए 2020 । माघ मेला में पावन गंगा के तटए मोरी रोड पर सेवारत क्रियायोग शिविर में गुरुजी स्वामी श्री योगी सत्यम् द्वारा देश . विदेश से पधारे कल्पवासियों एवं श्रद्धालुओं को क्रियायोग अभ्यास कराते हुए क्रियायोग के सिद्धांत एकोऽहम् बहुश्यामि की व्याख्या की। परब्रह्म नित्यए पूर्णए अनादिए अनन्त हैंए समस्त सृष्टि उन्हीें का साकार रूप है ए उनके अलावा और कुछ नहीं है। वहीं ज्ञान के रूप में ए ज्ञान खोजने की प्रविधि तथा खोजने वाले के रूप में होते हैं। सामान्यता इस सत्य की अनुभूति के लिये दस लाख वर्षोें की स्वभाविक आधिव्याधि रहित विकास की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिक ऋषियों ने ये सिद्ध किया है कि पचास मिनट में की गई एक सौ क्रियायें मनुष्य में एक दिन में एक दिन में एक सौ वर्ष का नैसर्गिक विकास लाती हैरू एक वर्ष में छत्तीस हज़ार वर्ष का विकास । इस प्रकार मनुष्य३ प्रकाशनार्थ । फरवरी 10ए 2020 प्रयागराजए फरवरी 10ए 2020 । माघ मेला में पावन गंगा के तटए मोरी रोड पर सेवारत क्रियायोग शिविर का आज समापन हुआ। प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी भारत के अनेक लोगों के साथ.साथ अमेरिकाए कनाडाए स्वीटज़रलैंडए जेनेवाए सिंगापुरए ब्राज़ील ए नेपालए साउदी अरेबियाए यूरोप से आकर लोग क्रियायोग साधना में भाग लिये। दस जनवरी से दस फरवरी तक पूरे महीने भर क्रियायोग शिविर में श् क्रियायोग का विस्तार . भारत राष्ट्र का निर्माणश् से सम्बंधित विषयए दर्शन व सिद्धान्त का प्रशिक्षण व अभ्यास कराया गया। क्रियायाग ध्यान से सत्य की अनुभूति होती है कि शरीर एक राष्ट्र है। इस राष्ट्र में ब्रह्माण्ड की सभी रचनायें विद्यमान हैं जो पाँच अवरणों ;कोषोंद्ध में सुशोभित हैए जिन्हें अन्नमय कोषए प्राणमय कोषए मनोमय कोषए ज्ञानमय कोष व आनन्दमय कोष कहते हैं। अन्नमय कोष सभी प्रकार के अणु . परमाणुओं से भरा हुआ हैए प्राणमय कोष सभी प्रकार के वनस्पतियोंए मनोमय कोष सभी प्रकार के जीव . जंतुओंए ज्ञानमय कोष सभी प्रकार के मानवों व आनन्दमय कोष सभी प्रकार के देवी . देवताओं से सुशोभित है। मनुष्य स्वरूप में सिर ऊपर तथा रीढ़ नीचे व्यवस्थित होने के कारण उसको पर्याप्त ज्ञान व शक्ति प्राप्त है। इस शक्ति व ज्ञान का उपयोग करके मनुष्य स्वरूप में व्यवस्थित सभी प्रकार के आवरणों को हटाकर ईश्वर से एकता की अनुभूति कर लेता है। इस प्रकार के मनुष्य राष्ट्र के सर्वांगीण विकास कर सकते हंै। उपस्थित विशाल जनसमूह को क्रियायोग को विस्तार से समझाते हुए गुरुदेव ने स्पष्ट किया कि क्रियायोग का अभ्यास वास्तविक पंचकोषी परिक्रमा है।

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