मानव एकजुटता दिवस विविधता में एकता व वसुधैव कुटुम्बकम् का उत्सव

ऋषिकेश, 20 दिसम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने  अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस के अवसर पर कहा कि यह ‘विविधता में एकता’, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ विश्व एक परिवार है का उत्सव है। एकजुटता उन मूलभूत मूल्यों में से है जो आपसी और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए अत्यंत आवश्यक है। आज का दिन समता, सद्भाव, सहयोग, समानता और सामाजिक न्याय की संस्कृति को बढ़ावा देना का अद्भुत संदेश देता है।
मानव एकजुटता से तात्पर्य सभी समुदायों, पंथों, जातियों और रंगों के लोगों के साझा लक्ष्यों और हितों के बारे में जागरूक करने का एक अवसर प्रदान करना है। आपसी सद्भाव से एकता की मनोवैज्ञानिक भावना विकसित होती है। साथ ही इसके माध्यम से सामाजिक संबंधों को मजबूत किया जा सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह समय संस्कृति और प्रकृति के लिये एकजुट होने का है; मानवाधिकारों और प्रकृति के अधिकारों के लिये एकजुट होने का है साथ ही वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के लिए एकजुट होने का है। आपसी और वैश्विक साझेदारी की नींव पर ही वैश्विक सहयोग और एकजुटता का निर्माण सम्भव है।
स्वामी जी ने कहा कि आपसी एकजुटता के लिये एकदूसरे की संस्कृति का सम्मान करना जरूरी है क्योंकि विश्वासों, मूल्यों और व्यवहारों के आधार पर ही समाज को आकार दिया जा सकता है। संस्कृति कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो पूर्व निर्धारित है या स्थिर है बल्कि वह तो समाज के कार्यों, विचारों, व्यवहारों के माध्यम से लगातार विकसित और आकार लेती है। कोई भी संस्कृति समाज का निर्माण नहीं करती बल्कि  समाज, संस्कृति को बनाता है। वर्तमान समय में पूरे वैश्विक समाज को एकजुटता व शान्ति की संस्कृति की आवश्यकता है इसलिये उसका निर्माण भी समाज का ही कर्तव्य है।
जब भी कोई संस्कृति आकार लेती है तो उसके पीछे उस समय के समाज का योगदान होता है। वर्तमान समय के सांस्कृतिक मानदंडों, मूल्यों और सांस्कृतिक अपेक्षाओं के अनुरूप वर्तमान संस्कृति का निर्माण किया जा सकता है। संस्कृतियों के अंतर्संबंध के कारण ही भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं के पार भी उत्कृष्ट संस्कृतियों का विकास हुआ है। वर्तमान समय में प्रकृति के संरक्षण की संस्कृति विकसित करने की जरूरत है।
स्वामी जी ने कहा कि जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ता है नई परिस्थितियों और सम्भावनाओं का सामना भी करता है परन्तु प्रकृृति हर युग और हर पीढ़ी के लिये अत्यंत आवश्यक है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रकृति संरक्षण के संदेश को विरासत के रूप में निरंतरता के साथ प्रसारित करें तो आने वाली पीढ़ियों का प्रकृति से जुड़ाव भी बना रहेगा, प्रकृति का संरक्षण भी होगा साथ ही पूर्वजों  द्वारा प्रदान किये प्राकृतिक व सांस्कृतिक मूल का प्रसार भी होता रहेगा। प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के माध्यम से ही वैश्विक स्तर पर एकजुटता व शान्ति की संस्कृति स्थापित की जा सकती है और भावी पीढ़ियों के लिये यही एकजुटता का आधार भी है

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