‘रनवे 34’ को लेकर रकुलप्रीत सिंह ने बताई अपनी जर्नी, कहा- ‘रियल प्लेन में शूट करना नहीं था आसान’

दक्षिण भारतीय फिल्मों से अभिनय यात्रा शुरू करने वाली रकुलप्रीत सिंह इन दिनों काफी व्यस्त हैं। आगामी सप्ताह में सिनेमाघरों में रिलीज को तैयार फिल्म ‘रनवे 34’ के बाद रकुलप्रीत की कई फिल्में कतार में हैं। इस फिल्म को लेकर उन्होंने साझा किए अपने जज्बात…

आपकी बैक टू बैक फिल्में आ रही हैं। कहना चाहिए कि सबसे खुशनुमा दौर में हैं…

मैं हमेशा खुश रहती हूं। अभी तो फिल्में आनी शुरू होंगी। कोरोना की वजह से कई फिल्में रिलीज नहीं हो पाईं। अभी एक्साइटिंग फेज है। मेरी अलग-अलग किरदारों वाली अलग-अलग फिल्में आएंगी।

साउथ में स्थापित कलाकार बनने के बाद पैन इंडिया फिल्म का हिस्सा बनना ज्यादा आसान हो गया है?

मुझे आसान या मुश्किल पता नहीं। फिल्म किसी भी भाषा में हो, इमोशन (भावनाएं) सभी में समान होते हैं। अब भाषा बैरियर नहीं रही है। अच्छी बात यह है कि पूरी इंडस्ट्री एक साथ है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां इतनी विविधता है। मुझे लगता है कि इस विविधता का सही तरीके से उपयोग किया जाए तो ग्लोबली सबसे बेहतरीन फिल्में बना सकते हैं क्योंकि ऐतिहासिक तौर पर भी हम काफी समृद्ध हैं। हर जगह का अलग कल्चर और इतिहास है। हर जगह की बेहतरीन चीजों को लाकर फिल्म बनाएं तो हम दुनिया के बाक्स आफिस पर शासन कर सकते हैं।

‘रनवे 34’ से जुड़ने की क्या कहानी रही?

‘रनवे 34’ मुझे कोरोना की पहली लहर के बाद नरेट की गई थी। एविएशन पर ऐसी फिल्म हमारे देश में नहीं बनाई गई है। अजय देवगन सर इसे निर्देशित कर रहे थे, अमिताभ बच्चन सर के साथ काम करने का मौका मिल रहा था तो कौन मना करेगा। मेरा किरदार भी काफी दमदार है। मेरा मानना है कि अगर आप जिंदगी में अपने से बेहतर लोगों के साथ काम नहीं करेंगे तो ग्रो कैसे करेंगे! मुझे सबसे एक्साइटिंग यही लगता है कि अपने से ज्यादा अनुभवी और बेहतर लोगों के साथ काम करूं, उनसे सीखूं।

अजय देवगन के साथ यह आपकी दूसरी फिल्म है। इस बार वह निर्देशक भी हैं…

(मुस्कुराते हुए) बतौर निर्देशक उनके ऊपर जो भार है, वह बहुत ज्यादा होता है। ‘रनवे 34’ शूट करना आसान नहीं था। इसमें काफी टर्बुलेंस (मौसम खराब होने पर विमान का हिचकोले खाना) दिखा रहे हैं, उन्हें शूट करना आसान नहीं था। वो सब सेटअप करते थे, फिर रिहर्सल देखते थे, फिर चेंज करके एक्टिंग करते थे। फिर टेक कट होने के बाद सबके सीन देखते थे।

पायलट बनने के लिए कोई ट्रेनिंग भी ली?

हमारे सेट पर एक कैप्टन रहते थे। उन्होंने हमें काकपिट में कार्यप्रणाली की तीन दिन तक ट्रेनिंग दी। उसकी शब्दावली से परिचित कराया। हमने यह भी ध्यान रखा कि सेट पर जो एक्शन कर रहे हैं, वो रियल लगें क्योंकि हमने कोई सेट नहीं बनाया था। हमने रियल प्लेन में इसे शूट किया है।

विमान यात्रा से जुड़ा कोई सुखद अनुभव?

मेरा बुरा अनुभव रहा है। एक बार एटीआर प्लेन से जा रही थी, जो छोटा सा प्लेन होता है। उसमें 30 हजार फीट की ऊंचाई पर टर्बुलेंस आया तो सांसें अटक गई थीं। (हंसते हुए) जब मैं फिल्म में सीन कर रही थी तो वही याद कर रही थी कि टर्बुलेंस होने पर क्या प्रतिक्रिया होती है, वरना आज तक सारी लैंडिंग सेफ हुई है।

किसी किरदार ने आपके डर को बाहर निकाला है?

मुझे नहीं लगता कि मैं किसी चीज से डरती हूं। मैं डरकर जिंदगी नहीं जीती। मैं आर्मी आफिसर की बेटी हूं तो हमें यही सिखाया गया है कि किसी चीज से डर नहीं होना चाहिए। हमें इसी तरह से बड़ा किया गया है। जब मुश्किल चीजें आती हैं तो आप आत्मविश्वास के बल पर ही उससे पार पाते हैं।

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