प्रयागराज हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में 1 जुलाई को अपराह्न 4 बजे एकेडेमी में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की पूण्यतिथि के अवसर पर टण्डन चित्र पर एकेडेमी के प्रषासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय एवं एकेडेमी के समस्त कार्मिकों के द्वारा माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन किया गया। उनको याद करते हुये एकेडेमी के प्रषासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने कहा कि ‘राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने देवनागरी लिपि के उपयोग पर जोर दिया और उर्दू लिपि के साथ-साथ अरबी-फारसी मूल के शब्दों को भी खारिज कर दिया। जबकि गाँधी और अन्य नेताओं ने हिन्दी और उर्दू के मिश्रण हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाने की वकालत की। इसके कारण नेहरू ने उन्हें राजनीतिक प्रतिक्रियावादी कहा। संस्कृतिकरण या भाषा को अधिक औपचारिक बनाने के प्रति उनका दृष्टिकोण भी विवादास्पद था। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने 10 अक्टूबर, 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के प्रांगण में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। इसी क्रम में 1918 में उन्होंने ‘हिन्दी विद्यापीठ’ और 1947 में ‘हिन्दी रक्षक दल’ की स्थापना की। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी के प्रबल पक्षधर थे। वह हिन्दी में भारत की मिट्टी की सुगंध महसूस करते थे। हिन्दुस्तानी एकेडेमी का राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन से गहरा जुड़ाव है क्यांेकि एकेडेमी के भवन का नामकरण ‘राजर्षि टण्डन भवन’ किया गया।’ इस अवसर पर रतन पांडये, अनुराग ओझा संतोष कुमार तिवारी, अंकेश श्रीवास्तव, सुनील कुमार, मोहसिन खँा, अमित कुमार सिंह, सहित समस्त कर्मचारी उपस्थित थे।
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