18वीं विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिए बिना ही चली गई आजम की विधायकी

10वीं बार विधायक बने आजम खां की सदस्यता 154 दिन के अंदर ही रद्द हो गई। उन्होंने 10वीं बार विधायक के रूप में शपथ मई महीने में अपने पुत्र अब्दुल्ला आजम के साथ ग्रहण की थी। बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण से पूर्व वो विधानसभा गए थे और विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में शपथ ग्रहण की। इसके बाद सदन की कार्यवाही में हिस्सा लिए बिना ही वो लौट गए। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बगल वाली सीट उनको आवंटित की गई थी, लेकिन इस सीट पर एक वो एक दिन भी नहीं बैठ पाए।

10वीं बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले आजम खां की विधायकी 27 अक्तूबर को कोर्ट से तीन साल कैद की सजा मिलने के बाद रद्द कर दी गई है। 2022 के विधानसभा का चुनाव आजम खां ने सांसद रहते हुए लड़ा था और विजयी हुए थे। जिस वक्त चुनाव हुए थे आजम खां जेल में थे। उन्होंने जेल से ही अपना नामांकन दाखिल किया था। जेल में होने की वजह से वो अपना प्रचार भी नहीं कर सके थे। इसके बाद भी वो भारी अंतर जीते थे। विधानसभा में हर मुद्दे को पूरी संजीदगी के उठाने वाले आजम खां इस सदन में अपनी बेबाक राय नहीं रख पाए। विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद उन्होंने कार्यवाही में भाग नहीं लिया था। बीच में उनकी सेहत भी कुछ खराब रही थी, इस वजह से वो सदन की
कार्यवाही में भाग नहीं ले पाए।

सदन में आजम खां की मौजूदगी न होने से पार्टी को उनको कमी महसूस होगी। क्योंकि प्रदेश में जब सपा की सरकार थी तो विपक्ष के सवालों का जवाब आजम खां ही देते थे। सरकार की ओर सदन में वो ही पक्ष रखते थे। विपक्ष में रहते हुए आजम खां कई बार सत्ता पक्ष को अपनी उपस्थिति का एहसास करा चुके हैं। अपनी तकरीर और दलीलों के माध्यम से सत्ता पक्ष को निरुत्तर करने का माद्दा रखते हैं। लेकिन 18वीं विधानसभा में शायद ही आजम खां अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकें। सपा के कद्दावर नेता माने जाने वाले आजम खां की विधायकी रद्द होने से पार्टी को भी कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है। वो सपा का मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं। मुरादाबाद मंडल सहित पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर उनका अच्छा प्रभाव माना जाता है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आजम खां के पास 45 साल का लंबा अनुभव है। विधानसभा के साथ-साथ संसद के दोनों सदनों के सदस्य वो रह चुके हैं। ऐसे में उनके राजनीतिक अनुभव का सपा को लाभ नहीं मिल पाएगा। सपा को इसका नुकसान निकाय चुनावों में उठाना पड़ सकता है।

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