संजीदा मिज़ाज़ सादा तबीअ’त बा-कमाल शख़्सियतों के मालिक हैं जस्टिस सुधीर नारायण अग्रवाल**

प्रयागराज। यूं तो भारतीय सर जमीं पर बहुमुखी प्रतिभावान शख़्सियतों को जन्म देने की परम्परा रही है। उन शख़्सियतों को उनके कामों से जाना पहचाना जाता है। परंतु यहां पर मैं चंद लोगो को शामिल करना चाहूंगा जिन्होंने अपने काम के बरअक्स या यूं कहिए  काम के बिल्कुल विपरीत अपने अंदर छुपे कलाकार को भी ज़िन्दा रखा और एक ख़ास पहचान बनाया। और मुल्क का गौरव बढ़ाया।
ऐसी ही महान विभूतियों में ख़ास नाम होमी जहांगीर भाभा हैं, जिन्हें लोग भारत के परमाणु शक्ति कार्यक्रम के जन्मदाता के रूप में ही जानते हैं। मगर यह बात उनकी शख़्सियत के एक ही पहलू को ही उजागर करती है। दरअसल होमी भाभा बड़े वैज्ञानिक के साथ एक मंझे हुए कलाकार (Painter) और मानवता के पैरोकार भी थे।
दूसरा नाम बाबू गुलाबराय को कौन नहीं जानता।
बाबू गुलाबराय द्विवेदी युग की सांस्कृतिक नैतिक परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाले आलोचक,  निबंधकार और एक लेखक भी थे। इन कामों के विपरीत उन्होंने छतरपुर दरबार में न्यायाधीश की सक्रिय भूमिका निभाई।
इसी तरह बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर हैं जिन्होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसी विलक्षण और अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया। अपने अंदर साहित्य, दर्शन, संस्कृति को समेटा हुआ था। इसकी झलक उनकी रचनाओं एवं पेन्टिग्स में भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
यह कहना उचित होगा कि बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्ति के कई आयाम होते हैं, वह कई क्षेत्र में सक्रिय होते हैं। अक्सर लोग बात करते समय उसके किसी एक ही आयाम पर ही ठहर जाते हैं, अन्य पहलू अनदेखे रह जाते हैं। ऐसी बहुमुखी व्यक्तित्व का समाज से परिचय कराना भी जरूरी है।
*कलात्मक सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती हैं कृतियां*
ऐसी ही शख़्सियत के मालिक इलाहाबाद में रहने वाले जस्टिस सुधीर नारायण भी हैं, जिन्हें लोग एक जज के रूप में तो जानते हैं। परंतु उनकी दूसरी प्रतिभाओं से अनभिज्ञ हैं या बहुत कम ही लोग जानते हैं।
जैसा कि सभी जानते हैं। एक न्यायाधीश वह व्यक्ति होता है जो अकेले या न्यायाधीशों के पैनल के हिस्से के रूप में अदालती कार्यवाही करता है। वह गवाहों और सबूतों को सुनता और देखता है, तर्कों का आकलन करता है, और फिर कानून की व्याख्या और उनके आधार पर मामले में फैसला सुनाता है। इन सब बातों के ठीक उलट अदालती कार्रवाहियों से दूर रचनात्मक कामों में ख़ामोशी से लीन रहना भी उनकी ज़िंदगी का एक हिस्सा है। अर्थात जस्टिस सुधीर नारायण सिर्फ एक न्यायधीश ही नहीं बल्कि वह एक चित्रकार और कवि होने के साथ वह संगीत का शौक भी रखते हैं। उनकी पेन्टिग्स एवं साहित्य रचना उनके कलात्मक सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी कलात्मक चेतना के समाजिक रूपों को दर्शाती है। उनका संवाद करने का यह तरीका ही व्यक्ति और समाज को समेकित करता है। जैसा कि वह स्वयं कहते हैं कि कला के द्वारा मानव मन में उद्वेलित संवेदनाएं, प्रवृत्तियों को ढालने तथा चिंतन को मोड़ने, अभिरुचि को दिशा देने की अद्भुत क्षमता होती है।
आपके अन्दर तो बचपन से ही कला, साहित्य एवं संगीत में अभिरुचि रही है। यही अभिरुचि और चाह ने हृदय की गइराईयों से निकलने वाले भाव, रेखा, रंग, रूप, शब्‍दों की अभिव्‍यक्ति, अनुभूति को कला का रूप देने के लिए आपने काव्य लेखन के साथ-साथ रंग और रंगों से भीगी तूलिका को ही आत्मिक शान्ति का माध्‍यम बनाया। जबकि भारतीय साहित्य-कला और संस्कृति की चाहत ने उन्हें अपनी प्रतिभा-कला को दर्शाने का भरपूर अवसर प्रदान किया। इसके लिये रूचि के मुताबिक आपने भारतीय कला की वाश टेक्नीक को अपनाया।
इस तकनीक की शुरुआत बंगाल में हुई थी। जो परंपरागत भारतीय कला के राजपूत शैली और मुग़ल शैली से आधार तत्व के साथ जापानी ’वाश’ टेक्नीक के सम्मिश्रण से बनी और भारतीय नयी शैली ‘वाश’ टेक्नीक का जन्म हुआ। वाश टेक्नीक में भारतीय विषयों पर अवनीन्द्रनाथ ने चित्र बनाए। जो कालांतर में ‘बंगाल- स्कूल’ के नाम से विख्यात हुई और आधुनिक भारतीय कला की आधार भूमि साबित हुई।
*चित्रमय काव्य है या काव्यमय चित्र है*
भारतीय परंपरा की इस शैली में जस्टिस सुधीर नारायण ने तीस चित्रों की अनूठी श्रृंखला बनाया है, जिसे ‘अन्तर्यात्रा’ नाम दिया है। अनूठी इसलिए भी है कि ये श्रृंखला स्वयं द्वारा लिखी गई काव्य रचनाओं पर आधारित चित्र रचना हैं। जिसमे मुखर काव्य, साहित्यिक अनुभूति की गाथा, अन्तरतम भावनाओं के स्वर और रंग बोलते हुए शब्द जैसे प्रतीत होते हैं।
सुधीर नारायण अग्रवाल जी के तीस चित्रों का संग्रह है। कविता उसका पूरक है। यह कहना कठिन हो जाता है। चित्रमय काव्य है या काव्यमय चित्र है।
ललित कला अकादमी में वाश पद्धति के चित्रों की प्रदर्शनी का लगाया जाना इस बात का प्रमाण है कि भले ही कला में नित नए प्रयोग हो रहे हैं, उसके साथ कला के कदीमी परंपरा को भी याद रखना और उसे आगे बढ़ाना भी कला से जुड़े लोगों का परम दायित्व है।
‘अन्तर्यात्रा’ चित्रों की प्रदर्शनी जीवन की समग्रता को दर्शाता है कि यात्रा जीवन से शुरू होती है, मरण से अन्त होती है। यह यात्रा का स्थूल रूप है, जिसमें मनःचेतना सुख-दुःख की गलियों से गुज़रना है, कभी वन के कंटक पथ पर चलना, कभी उद्वेग से शिखर पर आरोहण करना है तो कभी तटों का बन्धन छोड़ गंगा की धारा में बहती हुई सागर में समाविष्ट हो जाना है। प्रत्येक चित्र के साथ कविता स्वंय उसके भावों की व्याख्या करते हैं। अन्तिम चित्र ‘योगनिद्रा जहाँ मन परम् चेतना में निमग्न है। न इच्छा न अनिच्छा, न राग न द्वेष, न सुख न दुःख। स्वंय में स्थित स्वंय में आनन्द है।
साहित्य और कला जगत में आपका यह प्रयास ही उन्हें दूसरों से अलग पहचान बनाता है। उनके दो अन्य काव्य ‘सुरसरिता’ तथा ‘वन्दना’ (प्रेस में है) जल्द ही आने वाले हैं।
            यही वजह है कि राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश के कार्यकारिणी सदस्य रवींद्र कुशवाहा ने जब आपके वाश तकनीक से बने चित्रों को देखा तो तो बहुत प्रभावित हुए और उन्हें ललित कला अकादमी में चित्र प्रदर्शनी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका प्रयास और प्रस्ताव दोनों सफल रहे। ललित कला अकादमी की तरफ से जस्टिस सुधीर नारायण अग्रवाल को बतौर  गेस्ट कलाकार के रूप में आमंत्रित किया गया। इस तरह उनके चित्रों की श्रृंखला ‘अन्तर्यात्रा’ सन 2021 में 24 से 26 मार्च के बीच ललित कला अकादमी उप्र में  लगाई गई। जो लोगों के बीच आकर्षण का विषय बनी रही। लेकिन आज इस पद्धति में बहुत कम काम हो रहे हैं। कलाकारों का वाश तकनीक की ओर रूचि न होना चिंता का विषय है।
इसके पूर्व आर्टिस अड्डा द्वारा उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद में आयोजित चित्रकला प्रदर्शनी में भी जस्टिस सुधीर नारायण अग्रवाल के दो चित्र लग चुके हैं। जिन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया था। वह स्वयं भी कला एवं संस्कृति के प्रोत्साहन के लिए कृतसंकल्प हैं। कलाकारों के प्रति सहानुभूति और कला में योगदान के लिए सराहनीय प्रयास करते हैं।
वैसे जस्टिस सुधीर नारायण वॉश पेन्टिग्स के सृजन के साथ-साथ एक्रैलिक एवं तैल रंगों के चित्रों में महारत रखते हैं।
बर्हिमुखी प्रतिभा के आयामी जस्टिस सुधीर नारायण का जन्म 10 जुलाई, 1941 को इलाहाबाद में ऐसे कुल में हुआ। जहाँ कानून और अदालत से उनका नाता रहा है। उनके पिता एवं पितामह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता थे। जस्टिस सुधीर नारायण ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए, एलएलबी  किया। लेकिन आपकी अभिरुचि कला, साहित्य एवं संगीत में थी। कलागुरू सुखवीर सिंहल, पूर्व प्रधानाचार्य गर्वमेन्ट आर्ट कालेज लखनऊ द्वारा संचालित कला विद्यालय में आठ वर्ष छात्र रहे। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कला विभाग में दो साल का डिप्लोमा कोर्स किया। जहां उन्हें कलागुरु क्षितीन्द्र नाथ मजमूदार का सानिध्य प्राप्त हुआ। जो उस समय विभागाध्यक्ष थे। संगीत में भी अभिरुचि रखने के चलते आप ने चार वर्ष तक गुरू हीरालाल चौरसिया से शास्त्रीय संगीत भी सीखा।
जैसा कि आप जानते हैं कि उनके पिता इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता थे। लिहाज़ा आपने भी इक्कीस वर्ष की आयु (1962) में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत शुरू किया और कुशल अधिवक्ता रहते हुए 1992 में उनको उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। 2003 में वह सेवा निवृत्त हुए। वर्ष 2002 को कावेरी जल विवाद अधिकरण में न्यायाधीश-सदस्य नियुक्त रहे. अधिकरण 18 जुलाई 2018 को समाप्त हुआ।

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