राष्ट्र निर्माण का बुनियादी आधार शिक्षा व्यवस्था: प्रो आनन्द

प्रयागराज। भारत में राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद पर व्यापक चर्चा हो रही है, परन्तु राष्ट्र निर्माण पर कोई चिंतन नहीं हो रहा है। राष्ट्र निर्माण का बुनियादी आधार शिक्षा व्यवस्था है और राष्ट्र निर्माण के अन्तर्गत शिक्षा व्यवस्था के समक्ष तीन चुनौतियां स्वराज का विस्तार, विकासशीलता और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना हैं।
उक्त बातें उच्च अध्ययन केन्द्र, शिमला के पूर्व वरिष्ठ अध्येता प्रो.आनन्द कुमार ने गुरूवार को फैकल्टी डेवलपमेन्ट सेन्टर, ईश्वर शरण पीजी काॅलेज द्वारा ‘‘एजुकेशनल फिलाॅसफी आॅफ महात्मा गांधी: ए रोडमैप टू नेशन बिल्डिंग’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करने के उपरान्त सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने आगे कहा कि इन चुनौतियों से निपटने में गांधी का शैक्षिक दर्शन मुख्य उपकरण हैं। गांधी के शैक्षिक मार्ग के तीन आधार शैक्षिक दर्शन, शैक्षिक प्रक्रियायें एवं शैक्षिक संस्थायें हैं। इनमें से शैक्षिक संस्थायें स्वतः काल बाह्य हो गयी हैं। प्रो.आनन्द कुमार ने कहा कि गांधी की शिक्षा व्यवस्था, व्यक्तित्व निर्माण, राष्ट्र निर्माण एवं भविष्य निर्माण की पावन त्रिवेणी हैं, जिसमें गांधी ने सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक और आध्यात्मिक चारों मोर्चों पर पर्याप्त चिंतन किया है। गांधी का शैक्षिक दर्शन अत्यन्त समावेशी है, जिसमें दलित, स्त्री, अल्पसंख्यक, स्वास्थ्य और भाषा जैसे समस्त तत्व समाहित हैं।
विशिष्ट अतिथि अधिष्ठाता, काॅलेज विकास परिषद, इविवि प्रो.प्रशान्त अग्रवाल ने कहा कि गांधी के चिंतन को पढ़कर समझना मुश्किल है। गांधी का चिंतन अनुभव ग्राह्य है। गांधी महान क्रान्तिकारी थे, क्योंकि उन्होंने विविध स्तरों पर सदैव यथा स्थितिवाद का विरोध किया। सत्र की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय शासी निकाय के अध्यक्ष आर.के श्रीवास्तव ने कहा कि यह संस्थान गांधी के शिक्षा दर्शन को विगत चालीस वर्षों में व्यवहार रूप में परिणत करने वाला संस्थान है। गांधी का व्यक्तित्व कथनी करनी की एकता का अन्यतम उदाहरण है। गांधी का शैक्षिक दर्शन सामाजिक अंत्यज की मुख्य धारा में संस्थापना का प्रयास है, जो पाठ्यक्रम के साथ-साथ मूल्यपरक व्यवसायिक शिक्षा पर अवलम्बित है।
स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए फैकल्टी डेवलपमेण्ट सेण्टर के समन्वयक एवं काॅलेज के प्राचार्य प्रो.आनन्द शंकर सिंह ने कहा कि ईश्वर शरण संस्थान गांधी और विनोबा की धरती है। गांधी ने ही सर्वप्रथम निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा और आचरण आधारित शिक्षा पर चिंतन किया। गांधी के शैक्षिक चिंतन पर कांग्रेस के अंतःचरित्र और उनके आत्म संघर्ष का प्रभाव है। गांधी ने यूरोपीय शिक्षा ढांचे को नकारते हुए भारतीय मूल्य चिंतन परम्परा पर आधारित शिक्षा ढांचे की स्थापना का प्रयास किया। गांधी का समाज सुधार आंदोलन सभ्यता के पुनर्जीवन का आंदोलन था।
इस अवसर पर समस्त अतिथियों ने प्रो.आनन्द शंकर सिंह एवं डाॅ.मनोज दुबे द्वारा सम्पादित ‘गांधी के शैक्षिक दर्शन’ विषयक एक पुस्तक का विमोचन भी किया। कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय के समस्त शिक्षक, कर्मचारी एवं विद्यार्थियों के अतिरिक्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय, संघटक महाविद्यालयों के विभिन्न शिक्षक और सुदूर क्षेत्रों से आये विभिन्न प्रतिभागी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ.रचना सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डाॅ.मनोज दुबे ने किया।

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