आज से गुप्त नवरात्रि शुरू हो रही है, गुप्त नवरात्र का त्योहार हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवसर पर भगवानी दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। इस दौरान जातक कठिन व्रत करते हैं, जिससे उन्हें धार्मिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, तो आइए हम आपको गुप्त नवरात्रि व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के बारे में
पंडित के बारे में इसे करने से व्यक्ति को अक्षय फल मिलते हैं, जो जीवन की सभी मुश्किलों से निपटने में मदद करते हैं। पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की प्रतिपदा तिथि से इस पावन पर्व की शुरूआत होती है। माता दुर्गा के नौ रूपों के साथ ही इस दौरान दस महा विद्याओं की आराधना का भी बड़ा महत्व है।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
एक साल में चार बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इनमें माघ और आषाढ़ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। हर नवरात्रि के पर्व में घट स्थापना का विशेष महत्व है। घट स्थापना के बाद ही माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा प्रारंभ की जाती है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 6 जुलाई को आषाढ़ प्रतिपदा के दिन होगी। इस दिन घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 27 मिनट से 10 बजकर 5 मिनट तक रहेगा, इसी समय आपको माता दुर्गा और उनके प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा आराधना करनी चाहिए। पंडितों के अनुसार, नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना करने से भक्तों को शुभ फलों की प्राप्ति होगी। अगर आप गुप्त नवरात्रि में घट स्थापित करने वाले हैं तो आपको इसकी तैयारी एक दिन पहले ही कर देनी चाहिए। एक दिन पूर्व ही उस स्थान की साफ सफाई कर लें जहां घट स्थापित किया जाता है। हो सके तो घट स्थापना के लिए ईशान कोण (उत्तर-पूर्व के मध्य) का चुनाव करें।
गुप्त नवरात्रि पूजा के नियम
गुप्त नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों के साथ ही दस महाविद्याओं की भी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान महाविद्याओं की पूजा करने से कई सिद्धियां भक्तों को प्राप्त हो सकती हैं। गुप्त नवरात्रि के दौरान मांस-मदिरा का सेवन करने से आपको बचना चाहिए। इस समय लहसुन-प्याज खाना भी वर्जित माना जाता है। यानि गर्म तासीर वाले भोज्य पदार्थ इस दौरान नहीं करने चाहिए। नाखून और बाल कटवाने से भी आपको बचना चाहिए। शारीरिक संबंध बनाने से भी इस दौरान बचें। घर में घटस्थापित किया है तो घर में हर समय कोई-न-कोई व्यक्ति जरूर हो। इस दौरान व्रत रखने वाले जमीन पर सोएं तो अच्छा माना जाता है।
भूल से भी ना करें ये काम
पंडितों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मांस और मदिरा का बिलकुल सेवन नहीं करना चाहिए। इस दौरान प्याज और लहसून से भी दूरी बनाकर रखें, तामसिक भोजन जीवन में परेशानियां खड़ी करता है। गुप्त नवरात्रि में जब माता की आराधना कर रहे हैं तो किसी का भी दिल नहीं दुखाना चाहिए। किसी को अपशब्द नहीं बोलने चाहिए, गुप्त नवरात्रि में इस बात का बहुत ध्यान रखें कि दिन में ना सोएं, क्योंकि ऐसा करने से देवी मां नाराज होती हैं।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि महत्व
हिन्दू धर्म में गुप्त नवरात्रि का बहुत महत्व है। इस नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की गुप्त तरीके से पूजा की जाती है। इस नवरात्रि में तंत्र साधना का भी महत्व है। इस दौरान 10 महाविद्याओं की साधना करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और मन की हर मुराद पूरी होती है। तांत्रिक अपनी सिद्धिया तंत्र-मंत्र व यंत्र को इस नवरात्रि मे जाग्रत करते हैं।
नवरात्रि में मां दुर्गा की सवारी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भी नवरात्रि की शुरुआत शनिवार के दिन से होती है। तब मां घोड़े पर सवार होकर आती हैं। इस साल आषाढ़ नवरात्रि में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। माता रानी का घोड़े पर चढ़कर आना शास्त्रों के अनुसार अशुभ माना जाता है।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में जल्द विवाह के लिए करें ये उपाय
अगर आपके विवाह में देरी हो रही है, तो आपको आषाढ़ गुप्त नवरात्र के पूरे नौ दिनों तक पानी में हल्दी मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके साथ ही देवी से मनचाहे वर की प्रार्थना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस उपाय को करने से आपको सुयोग्य वर की प्राप्ति होगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जो लोग जल्द विवाह की कामना रखते हैं, उन्हें आषाढ़ नवरात्र के दौरान अपने माथे और नाभि पर हल्दी का तिलक लगाना चाहिए। हल्दी को शुभता का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस उपाय को करने से जीवन में सकारात्मकता आती है। साथ ही मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार मां दुर्गा की मूर्ति या छवि को स्थापित करें। उनके लिए स्नान, वस्त्र, दीप, धूप, फूल आदि सहित पूजा सामग्री तैयार करें। पूजा के दौरान मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें। मंत्रोच्चारण के साथ आरती और भजन करें। माता को फल का भोग लगाएं। अंत में सभी को प्रसाद बांटें।