तलाकशुदा पत्नी को पति से मिले गुजारा भत्ता पर कैसे और कितना भरना पड़ता है टैक्स? जानिए विस्तार से

सनातन संस्कृति में दाम्पत्य जीवन को सर्व सुख द्वार समझा जाता है और स्त्री-पुरूष के मिलन को सात जन्मों के सम्बन्ध का पुनर्मिलन करार दिया जाता है। लेकिन कई बार दोनों युगल जोड़ियों के व्यक्तिगत अहंकार से या पारिवारिक नासमझी वश जो दिल में दरार पैदा हो जाती है और लड़ाई-झगड़े एवं पारस्परिक लांछन की शुरुआत से सम्बंध विच्छेद यानी तलाक तक पहुंच जाती है, वह एक ऐसा वियोग होता है जो सम्बन्धित युगल जोड़ियों को ताउम्र एकांत में चूभती है।

वहीं, लोग इसे अपनी किस्मत मानकर समझौता तो कर लेते हैं, लेकिन गुजारा भत्ता (एलिमनी) की दरकार उस स्त्री या पुरूष को पड़ती है, जो आर्थिक रूप से पराधीन और कमजोर होता है। यूँ तो गुजारा भत्ता प्रायः तलाकशुदा स्त्रियों को दिया जाता है, लेकिन अपवाद स्वरूप यदि वह नौकरी पेशा हो या आर्थिक रूप से मजबूत और स्वावलंबी हो तो कभी कभी पुरुषों को भी गुजारा भत्ता देने का आदेश कोर्ट तब दे देता है जब औरत खुद तलाक मांग रही होती है। हालांकि व्यवहार में ऐसा विरले ही होता है।

ऐसे में सीधा सवाल है कि क्या तलाक के बाद पति से मिलने वाले गुजारा भत्ता (एलिमनी) पर पत्नी को टैक्स देना पड़ता है या नहीं? तो जवाब यही होगा कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि एलिमनी का भुगतान किस रूप में किया जा रहा है। यदि मासिक या वार्षिक आधार पर किस्तों में भुगतान किया जाता है, तो इसे आय माना जाता है। लिहाजा इस पर टैक्स लगता है। लेकिन अगर एकमुश्त भुगतान किया जाता है, तो इसे पूंजीगत प्राप्ति माना जाता है, जिस पर टैक्स नहीं लगता है।

अब सवाल उठता है कि गुजारा भत्ता यानी एलिमनी पर टैक्स कैसे लगता है? तो जवाब होगा कि मासिक या आवधिक भुगतान और एकमुश्त भुगतान की प्रवृति के मुताबिक करारोपण किया जाता है। उदाहरणतया यदि गुजारा भत्ता/एलिमनी का भुगतान मासिक या वार्षिक आधार पर किस्तों में किया जाता है, तो इसे “रेवेन्यू रिसिप्ट” माना जाता है, जो कि आयकर अधिनियम के तहत आय के रूप में परिभाषित है। इसलिए इस पर टैक्स लगता है और टैक्स का निर्धारण प्राप्तकर्ता के आयकर स्लैब के हिसाब से किया जाता है। वहीं यदि एलिमनी का भुगतान एकमुश्त राशि में किया जाता है, तो इसे “कैपिटल रिसीट” माना जाता है और इस पर टैक्स नहीं लगता है।

हालांकि, गुजारा भत्ता/एलिमनी के नजरिए से अन्य महत्वपूर्ण बातें भी मायने रखती हैं। जैसे- गुजारा भत्ता यानी एलिमनी देने वाले व्यक्ति को टैक्स छूट नहीं मिलती है। क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, पति की सैलरी से सीधे पत्नी को दी गई रकम भी पति की इनकम के तहत टैक्सेबल होगी। वहीं, इस बारे में विभिन्न न्यायालयों के भी फैसले दिए हुए हैं। विभिन्न न्यायालयों ने गुजारा भत्ता यानी एलिमनी पर टैक्स के मुद्दे पर अलग-अलग फैसले दिए हैं। इस बाबत दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि मासिक भुगतान के अधिकार को छोड़ने के बदले में प्राप्त एकमुश्त गुजारा भत्ता यानी एलिमनी पर टैक्स नहीं लगेगा।

जहां तक संपत्ति के रूप में गुजारा भत्ता यानी एलिमनी का सवाल है तो यदि तलाक से पहले किसी संपत्ति के जरिए एलिमनी का भुगतान किया जाता है, तो इसे टैक्स फ्री माना जा सकता है, लेकिन तलाक के बाद संपत्ति दी जाती है, तो इसे गिफ्ट नहीं माना जाएगा। इसलिए इस तरह के लेन-देन पर टैक्स लगाया जा सकता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि शादीशुदा स्त्री-पुरुष के बीच तलाक के बाद गुजारा भत्ता यानी एलिमनी पर टैक्स की देनदारी इस बात पर निर्भर करती है कि भुगतान का प्रकार क्या है? यदि मासिक या वार्षिक आधार पर किस्तों में भुगतान किया जाता है तो टैक्स देना होगा, जबकि एकमुश्त भुगतान पर टैक्स नहीं लगता है।

इसलिए यदि रजामंदी पूर्वक तलाक लिया भी जाए तो इतनी समझदारी अवश्य दिखानी चाहिए कि किसी के ऊपर अनावश्यक बोझ नहीं पड़े। आधुनिक क़ानून भले ही तलाक को मान्यता दे दें, लेकिन सनातन मूल्य एक दूसरे की धार्मिक जिम्मेदारियों से ताउम्र मुक्त नहीं करते! मरणोपरांत क्या होता होगा, भगवान जाने।

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