केंद्र सरकार के लाखों अधिकारी, कर्मचारी और पेंशनर्स बेसब्री पूर्वक 8वें वेतन आयोग की संस्तुति का इंतजार कर रहे हैं, ताकि बढ़ती महंगाई के चलते ऊंट के मुंह में जीरा के समान साबित हो रही उनकी सैलरी में कुछ इजाफा हो। इसलिए सरकार ने भी इसकी तैयारी अपने स्तर से शुरू कर दी है और पैनल के गठन पर विचार विमर्श हो रहा है। लिहाजा कर्मचारियों के मन में भी सबसे बड़ा और स्वाभाविक सवाल यही है कि आखिर में उनकी सैलरी कितनी बढ़ेगी और इसमें ‘फिटमेंट फैक्टर’ की क्या भूमिका होगी? क्योंकि इस बार ऐसी चर्चाएं हो रही हैं कि फिटमेंट फैक्टर तय करते समय मौजूदा महंगाई भत्ते को भी ध्यान में रखा जाएगा और संभवतः उसे बेसिक सैलरी में मर्ज करके इसका माकूल हल निकाला जाएगा। इसलिए आइए यहां पर हमलोग विस्तार पूर्वक समझते हैं कि फिटमेंट फैक्टर क्या होता है और सैलरी बढ़ने का असली गणित क्या है? क्योंकि जब इसे आप बरीकीपूर्वक समझ लेंगे तो फिर कोई भ्रांति नहीं रहेगी। इसलिए सर्वप्रथम हमलोग जानते हैं कि फिटमेंट फैक्टर क्या होता है? दरअसल, फिटमेंट फैक्टर एक मल्टीप्लायर यानी गुणांक होता है। पेशेवर अनुभव बताता है कि जब नया वेतन आयोग लागू होता है, तो मौजूदा बेसिक सैलरी को भी इस फिटमेंट फैक्टर से गुणा करके नई बेसिक सैलरी तय की जाती है। जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि सभी कर्मचारियों को एक समान आधार पर वेतन वृद्धि मिले और इसमें पिछली अवधि की महंगाई (जो डीए के रूप में मिलती रही) और एक वास्तविक वृद्धि शामिल किया जाए। उदाहरण के तौर पर इसे हमलोग ऐसे समझें कि 7वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर 2.57 था। जिसका मतलब था कि 6ठे वेतन आयोग के तहत जो बेसिक पे (पे बैंड में वेतन + ग्रेड पे) थी, उसे 2.57 से गुणा करके 7वें वेतन आयोग की नई बेसिक पे तय की गई थी। इसलिए उम्मीद है कि इस बार भी वही फॉर्मूला अपना जाएगा।
इसके अलावा अब हमलोग यह समझते हैं कि डीए मर्जर का क्या मामला है? मसलन, आमतौर पर जब भी नया वेतन आयोग लागू होता है, तो उस समय तक मिल रहे कुल महंगाई भत्ते यानी डीए को मौजूदा बेसिक सैलरी में मर्ज कर दिया जाता है। इसके बाद इस ‘रिवाइज्ड बेसिक सैलरी’ के आधार पर या सीधे पुरानी बेसिक पर फिटमेंट फैक्टर लगाकर नई पे-स्ट्रक्चर की पहली बेसिक सैलरी तय होती है और डीए का काउंटर शून्य से दोबारा शुरू होता है। इसे समझने के लिए हम यहां पर जानते हैं कि आखिर 7वें वेतन आयोग में क्या हुआ था? क्योंकि 1 जनवरी 2016 को जब 7वां वेतन आयोग लागू हुआ, तब तक डीए 125 प्रतिशत हो चुका था। इस 125 प्रतिशत डीए को पुरानी बेसिक पे में समाहित कर दिया गया था और फिर फिटमेंट फैक्टर (2.57) का इस्तेमाल नई बेसिक पे तय करने में हुआ था। इसलिए उम्मीद है कि ऐसा ही कुछ इस बार भी होगा।
स्वाभाविक सवाल है कि केंद्र सरकार के अधिकारियों, कर्मचारियों और पेंशनर्स को 8वें वेतन आयोग में क्या उम्मीद है? खासकर डीए मर्जर और फिटमेंट फैक्टर के बारे में। तो यहां पर चर्चा है कि इस बार डीए मर्जर की पूरी संभावना है। वह यह कि 1 जनवरी 2026 (जब 8वां वेतन आयोग लागू होने की उम्मीद है) तक जितना भी डीए (अनुमानतः 60 प्रतिशत से ऊपर) होगा, उसे बेसिक सैलरी में मर्ज कर दिया जाएगा। वहीं, फिटमेंट फैक्टर अंतर्गत कर्मचारी यूनियन 7वें वेतन आयोग के 2.57 फिटमेंट फैक्टर से काफी ज्यादा (जैसे 3.68) की मांग कर रही हैं। ऐसे में स्वाभाविक बात है कि सरकार इसे कितना रखेगी, यह आयोग की सिफारिशों पर पूरा का पूरा निर्भर करेगा। लेकिन उम्मीद है कि यह 2.57 से तो ज्यादा ही होगा। यानी संभवतः 2.8 से 3.0 तक या उससे भी अधिक।
तो आइए यहां जानते हैं कि आखिर आपकी नई सैलरी कैसे कैलकुलेट हो सकती है? यानी कि इसका सही तरीका क्या है? दरअसल, सोशल मीडिया पर चल रहे “बेसिक + डीए = फिटमेंट फैक्टर” जैसे फॉर्मूले भ्रामक तो हैं ही। इसलिए हम यहां पर आपको इसका सही तरीका बता रहे हैं। वह यह है: नई बेसिक पे का निर्धारण यानी नई बेसिक पे = मौजूदा (7वें सीपीसी की) बेसिक पे * 8वें सीपीसी का फिटमेंट फैक्टर। यह फिटमेंट फैक्टर अपने आप में मौजूदा डीए के मर्जर और वास्तविक वृद्धि को शामिल किए हुए होगा। उदाहरण: मान लीजिए कि आपकी मौजूदा बेसिक पे (लेवल 1) = ₹18,000 है। जबकि मान लीजिए 8वें वेतन आयोग का फिटमेंट फैक्टर 3.0 (यह सिर्फ एक उदाहरण है, वास्तविक फैक्टर अलग होगा) तय होता है। तो आपकी नई बेसिक पे होगी: ₹18,000 * 3.0 = ₹54,000 (यह उदाहरण के लिए है, वास्तविक आंकड़ा भिन्न हो सकता है)। (ध्यान रहे कि यह नई बेसिक पे होगी, जिस पर फिर आगे डीए, एचआरए आदि भत्ते लगेंगे। इस ₹54,000 में 1 जनवरी 2026 तक का डीए और वास्तविक वृद्धि दोनों शामिल माने जाएंगे।)
इसलिए आपको सुझाव दिया जाता है कि आठवें वेतन आयोग अंतर्गत वेतन बढ़ोतरी सम्बन्धी किसी भी प्रकार के गलत कैलकुलेशन से बचें। क्योंकि मीडिया और सोशल मीडिया में कई तरह की कैलकुलेशन चल रही हैं। जैसे बेसिक + डीए = सब टोटल, फिर 18 प्रतिशत हाइक, फिर नई सैलरी/पुरानी बेसिक= फिटमेंट फैक्टर 1.90, वह फिटमेंट फैक्टर निकालने का सही तरीका नहीं दर्शाती। क्योंकि फिटमेंट फैक्टर पहले तय किया जाता है सिफारिशों के आधार पर, और फिर उसे लागू किया जाता है पुरानी बेसिक पर, न कि किसी अनुमानित सैलरी से उसे निकाला जाता है। 1.90 जैसा कम फैक्टर पिछले पैटर्न से मेल नहीं खाता। इसलिए सावधानी पूर्वक इन बातों पर विचार करें और लाभ उठाएं।