बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु-मण्डल के प्रबल समर्थक थे”

‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज की ओर से आज (२ जून) पं० बालकृष्ण भट्ट के जन्मदिनांक की पूर्व-संध्या मे (‘पूर्व-संध्या’ पर अशुद्ध है।) ‘पं० बालकृष्ण भट्ट : दृष्टि और सृष्टि’ विषय पर एक राष्ट्रीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था, जिसमे देश के विभिन्न हिस्सोँ से प्रबुद्धजन की सहभागिता रही। उज्जैन की डॉ० अनन्ता शाकल्ये ने माँ सरस्वती की वन्दना की।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के संरक्षक विभूति मिश्र ने कहा, “बालकृष्ण भट्ट ने चर्चित मासिक हिन्दी-पत्रिका ‘हिन्दी प्रदीप’ का सम्पादन और प्रकाशन करते हुए, अपने विशेष सम्पादन-कौशल से तत्कालीन पाठकवर्ग को विधिवत् परिचित कराया था और स्वातन्त्र्य-समर मे अंगरेज़ोँ के विरुद्ध भारतीयोँ को विचार-स्तर पर संघटित किया था।”

आयोजक, भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “पं० बालकृष्ण भट्ट का निबन्ध ‘बातचीत’ एक विशिष्ट प्रकार का निबन्ध है, जिसमे उन्होँने ‘बातचीत’ की उपयोगिता और महत्ता को मनोवैज्ञानिक कसौटी पर परखा है। उन्होँने उस निबन्ध मे इसी बात पर बल दिया है कि ईश्वर ने मनुष्य को अन्य जीवधारियोँ की तुलना मे जो विशेष कोटि की शक्ति दी है, वह है, ‘वाणी’, जिसके आधार पर वह अन्य प्राणियोँ से पृथक् होकर, अपने को अग्रिम पंक्ति मे स्थापित कर लेता है।”

गोरखपुर से शिक्षक बृजेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने कहा, ” “भारतेन्दु-युग के प्रतिनिधि रचनाकार बालकृष्ण भट्ट एक सफल पत्रकार, उपन्यासकार, नाटककार और निबन्धकार थे, जिन्होँने पुरातन और आधुनिकता का वैचारिक समन्वय कर, अपने पत्र ‘हिन्दी प्रदीप’ और ‘हिन्दीवर्द्धिनी सभा’ के माध्यम से हिन्दीसाहित्य-सेवा के साथ-साथ तत्कालीन भारत के बालविवाह, सहभोजन का विरोध, धर्मान्धता, नये विचारोँ की निन्दा, परिवर्तन विमुखता, जाति-पाँति, छुआछूत आदिक समस्याओं पर कहीँ सहज भाव से तो कहीँ व्यंग्यात्मक तरीके से प्रकाश डालकर राष्ट्र की अनन्य सेवा की है।”

प्रयागराज की सहायक अध्यापक कंजिका पाण्डेय ने कहा, “पं० बालकृष्ट भट्ट जीवनपर्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियोँ से जूझते रहे; परन्तु अपनी हिन्दीसेवा मे कोई कोर-कसर नहीँ छोड़ी थी। वे भारतेन्दु-मण्डल के प्रबल समर्थक थे। उनमे उस युग की समस्त विशेषताएँ विद्यमान थीँ।”
अन्त मे आयोजक ने सबके प्रति आभारज्ञापन किया।

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